शिक्षक दिवस: ज्योतिबा दंपति को याद किए बिना अधूरा उत्सव

Teachers Day : हर साल 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यह देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्‍मदिन के अवसर पर मनाया जाता है। कहा जाता है कि डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद् और विचारक थे, जिन्होंने शिक्षा को जीवन का आधार माना। उनके सम्मान में यह दिवस शिक्षकों के योगदान को समर्पित है। हालांकि उन पर अपने ही स्‍टूडेंट जदुनाथ सिन्‍हा की थीसिस चुराने का भी आरोप है। स्‍वयं जदुनाथ सिन्‍हा ने इसका खुलासा अपनी पुस्‍तक

लेकिन क्या हम शिक्षक दिवस को केवल एक व्यक्ति तक सीमित रख सकते हैं? क्या इस अवसर पर उन अग्रदूतों को याद न करना उचित होगा जिन्होंने शिक्षा को सामाजिक क्रांति का हथियार बनाया? विशेष रूप से महात्मा ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले, जिन्हें ज्योतिबा दंपति के नाम से जाना जाता है, को याद किए बिना यह उत्सव अधूरा लगता है। उन्होंने 19वीं सदी में महिलाओं और वंचित वर्गों के लिए शिक्षा के द्वार खोले, जो आज की आधुनिक भारत की नींव है। यदि वे न होते, तो क्या आज महिलाएं समाज में सिर उठाकर जी पातीं? यह प्रश्न हमें उनके योगदान की गहराई समझाता है।

महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले (Jyotiba Phule) का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के पुणे में एक माली परिवार में हुआ था। उस समय भारतीय समाज जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता और महिलाओं के प्रति भेदभाव से ग्रस्त था। महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था; उन्हें घर की चारदीवारी तक सीमित रखा जाता था। ज्योतिबा ने स्कॉटिश मिशनरी स्कूल में पढ़ाई की और पश्चिमी विचारकों जैसे थॉमस पेन की किताब ‘राइट्स ऑफ मैन’ से प्रेरित हुए। उन्होंने महसूस किया कि शिक्षा ही सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने का माध्यम है। 1840 में उनका विवाह सावित्रीबाई से हुआ, जो मात्र 9 वर्ष की थीं। ज्योतिबा ने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले (Savitribai Phule) को खुद पढ़ाया और उन्हें शिक्षिका बनाया। यह उस युग में क्रांतिकारी कदम था, जब महिलाओं को पढ़ाना पाप माना जाता था।

सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। वे भारत की पहली महिला शिक्षिका मानी जाती हैं। ज्योतिबा के साथ मिलकर उन्होंने 1848 में पुणे के भिड़े वाड़ा में भारत का पहला बालिका विद्यालय स्थापित किया। इस स्कूल में शुरुआत में मात्र 9 लड़कियां थीं, लेकिन यह शिक्षा क्रांति की शुरुआत थी। उस समय समाज में महिलाओं की शिक्षा का विरोध इतना तीव्र था कि सावित्रीबाई (Savitribai Phule) को स्कूल जाते समय पत्थर मारे जाते थे, गोबर फेंका जाता था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वे न केवल शिक्षिका बनीं, बल्कि कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता भी। उनकी कविताएं ‘काव्य फुले’ में संग्रहित हैं, जो महिलाओं के अधिकारों पर केंद्रित हैं। ज्योतिबा दंपति ने कुल 18 स्कूल खोले, जिनमें लड़कियों और दलित बच्चों के लिए शिक्षा प्रदान की गई।

उनके योगदान केवल शिक्षा तक सीमित नहीं थे। ज्योतिबा ने 1873 में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की, जो जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवाद के खिलाफ था। उन्होंने ‘गुलामगिरी’ और ‘शेतकर्याचा आसुड’ जैसी किताबें लिखीं, जो वंचितों के अधिकारों पर आधारित थीं। महिलाओं के लिए उन्होंने विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया, बाल विवाह का विरोध किया और सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। सावित्रीबाई ने 1852 में विधवाओं के लिए आश्रम खोला, जहां गर्भवती विधवाओं को शरण दी जाती थी। उन्होंने प्लेग महामारी में सेवा की और खुद प्लेग से संक्रमित होकर 1897 में निधन हो गया। ज्योतिबा का निधन 1890  में हुआ। उनके प्रयासों से महिलाओं को पढ़ने का अधिकार मिला, जो पहले असंभव था।

अब सोचिए, यदि ज्योतिबा दंपति न होते तो क्या होता? 19वीं सदी में महिलाएं शिक्षा से वंचित थीं। वे घरेलू कामों तक सीमित थीं, उनके अधिकारों की कोई बात नहीं होती। ज्योतिबा के प्रयासों से महिलाओं की शिक्षा का बीज बोया गया, जो आज फल-फूल रहा है। आज भारत में महिलाएं डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, नेता और उद्यमी बन रही हैं। साक्षरता दर में वृद्धि हुई है; 2021 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता 65% से अधिक है, जो स्वतंत्रता से पहले नगण्य थी। लेकिन यह सब ज्योतिबा दंपति की नींव पर टिका है। यदि वे न होते, तो महिलाओं का सामाजिक उत्थान इतनी जल्दी न होता। जाति और लिंग भेदभाव आज भी जारी रहता, और समाज पिछड़ा रहता। उनकी क्रांति ने रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू जैसी महिलाओं को प्रेरित किया, और आज की पीढ़ी को।

शिक्षक दिवस पर डॉ. राधाकृष्णन को याद करना जरूरी है, लेकिन ज्योतिबा दंपति को भूलना अन्याय होगा। वे सच्चे शिक्षक थे, जिन्होंने शिक्षा को सामाजिक न्याय का साधन बनाया। आज जब हम शिक्षकों का सम्मान करते हैं, तो हमें उन अग्रदूतों को भी याद करना चाहिए जिन्होंने शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाया। स्कूलों में उनके बारे में पढ़ाया जाना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी उनके संघर्ष से प्रेरित हो। सरकारें उनके नाम पर पुरस्कार और संस्थान स्थापित करें। महिलाओं की सफलता उनकी विरासत है; यदि वे न होते, तो आज की महिलाएं शायद अभी भी अंधकार में होतीं।

शिक्षक दिवस हमें याद दिलाता है कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है। ज्योतिबा दंपति ने साबित किया कि एक शिक्षक समाज को बदल सकता है। उनके बिना यह दिवस अधूरा है। आइए, हम उनके योगदान को सलाम करें और उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लें। महिलाओं की शिक्षा आज की आवश्यकता है, और ज्योतिबा दंपति उसकी प्रेरणा।

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