भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करता है, लेकिन यहां जातिगत भेदभाव और हिंसा की जड़ें अभी भी बहुत गहरी हैं। 6 अक्टूबर को तो न्याय के सर्वोच्च मंदिर सुप्रीम कोर्ट में अप्रत्याशित घटना हुई। जातीय नफरत में अंधे एक वकील राकेश किशोर ने दलित समुदाय से आने वाले मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर जूता फेंककर मारने की कोशिश की। श्री गवई दलित समुदाय से आते हैं और भारत के दूसरी दलित मुख्य न्यायाधीश हैं (चीफ जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन पहले दलित मुख्य न्यायाधीश थे)।
यह हमला न केवल न्यायपालिका पर प्रहार था, बल्कि जातिवादी पूर्वाग्रह का खुला प्रदर्शन भी कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “निंदनीय” बताते हुए कहा कि हर भारतीय इससे आहत है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे “समाज में घुस चुकी नफरत” का प्रतीक बताया। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने “जातिगत पूर्वाग्रह की जड़ें” गिनाईं। बार काउंसिल ने आरोपी को निलंबित कर दिया, लेकिन यह घटना न्याय व्यवस्था में व्याप्त जातिवाद को उजागर करती है।
इस घटना को लेकर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने कहा भारत के माननीय चीफ जस्टिस पर सुप्रीम कोर्ट के भीतर हुआ हमला शब्दों से परे निंदनीय है। यह केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि हमारे संविधान और कानून के शासन पर सीधा आघात है। चीफ जस्टिस गवई ने इस स्थिति में अत्यंत संयम और गरिमा दिखाई है, लेकिन राष्ट्र को एकजुट होकर उनके साथ खड़ा होना चाहिए।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर लिखा “कुछ लोगों के हाथ में जाकर तो जूता भी अपमानित महसूस करता है। पीडीए समाज का अपमान करनेवाले ऐसे असभ्य लोग दरअसल अपने दंभ और अहंकार के मारे होते हैं। इनकी प्रभुत्ववादी सोच नफ़रत को जन्म देती है, जो देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए जितनी होती है, उतनी ही समाज के सबसे कमज़ोर अंतिम व्यक्ति के लिए भी। ऐसे लोग वर्चस्ववाद की बीमारी से घोर ग्रसित होते हैं। हम इसलिए कहते हैं, पीडीए का मतलब है ‘पीड़ित, दुखी, अपमानित’।
पीडीए समाज की उदारता और भलमनसाहत 5000 सालों से ऐसे लोगों को माफ़ करती आई है, लेकिन इस हद तक अपमान के बाद पीडीए समाज अब और नहीं सहेगा। भाजपा और उसके संगी-साथी अपनी सत्ता के अंतिम दौर में हैं , क्योंकि उनकी भ्रष्ट चुनावी साज़िश का भंडाफोड़ हो चुका है, वो अब कभी नहीं जीतेंगे। इसीलिए हताश होकर वो ऐसे कुकृत्य कर रहे हैं। भाजपाई इस बार जाएंगे तो फिर कभी नहीं आएंगे क्योंकि जब आबादी का 90% हिस्सा अपने हक़-अधिकार के लिए जाग गया है तो 10% का गुरूर और सिंहासन अब और नहीं टिकेगा।
भारत के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास में ये दौर ‘अपमान बनाम सम्मान’ के संघर्ष का है। पीडीए अपने स्वाभिमान और स्वमान का ये अंतिम संघर्ष निर्णायक रूप से जीतकर रहेगा।”
बहुजन समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने घटना को शर्मनाक करार दिया है। उन्होंने कहा ” भारत के प्रधान न्यायाधीश श्री बी. आर. गवई के साथ आज कोर्ट में सुनवाई के दौरान उन पर अभद्रता करने की कोशिश अति-दुखद तथा इस शर्मनाक घटना की जितनी भी निन्दा की जाये वह कम है। सभी को इसका उचित व समुचित संज्ञान ज़रूर लेना चाहिये।”
गौरतलब है कि 16 सितंबर को मध्य प्रदेश के खजुराहो के जवारी (वामन) मंदिर में भगवान विष्णु की 7 फीट ऊंची खंडित मूर्ति की बहाली की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की थी। याचिकाकर्ता ने इस फैसले पर नाराजगी जताई थी। उसके बाद से दलित न्यायाधीश के खिलाफ सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियों की बाढ़ आ गई थी। माना जा रहा है कि यह हमला भी इसी नफरत का हिस्सा थी।
ड्रोन चोर कहकर दलित की मॉब लिंचिंग
दूसरी घटना रायबरेली, उत्तर प्रदेश की है, जहां 5 अक्टूबर 2025 को 25 वर्षीय दलित युवक हरिओम को “ड्रोन चोर” कहकर भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। पॉलिटिकल दबाव बढ़ने पर पुलिस ने SC/ST एक्ट के तहत दर्ज किया और पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया। इसके अलावा तीन पुलिसकर्मियों को निलंबित किया। राहुल गांधी ने पीड़ित परिवार से बात की और “दिल दहला देने वाली” घटना बताते हुए योगी सरकार पर “जंगल राज” का आरोप लगाया। परिवार ने मांग की कि अपराधियों को फांसी दी जाए और उनके घरों को ध्वस्त किया जाए। कांग्रेस ने 1 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की।
रायबरेली से सांसद और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीड़ित परिवार से फोन पर बात की है। कांग्रेस पार्टी के अनुसूचित जाति विभाग के प्रमुख राजेंद्र पाल गौतम ने कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में यह भी कहा कि इस घटना की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन होना चाहिए।
राजेंद्र पाल गौतम ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश में पिछले 10 साल में दलित उत्पीड़न काफी तेजी से बढ़ा है। दलितों की हत्या हुईं हैं, सामाजिक बहिष्कार की घटनाएं घटीं और संस्थागत भेद-भाव हुआ है। देश में दलित उत्पीड़न के मामले में भाजपा शासित पांच राज्य शीर्ष पर हैं। इन पांच राज्यों में दलित उत्पीड़न की 75 प्रतिशत घटनाएं हुई हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 26.2 प्रतिशत है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘रायबरेली की घटना में जब दलित युवक को पीटा जा रहा था, तब वह राहुल गांधी जी का नाम ले रहा था, लेकिन आरोपी मजाक उड़ाते हुए कहते सुने गए कि यहां सब बाबा वाले हैं।’’
दलितों के साथ बढ़ रहा अत्याधार
स्वतंत्रता के 78 वर्षों बाद भी भारत में, दलित समुदाय (जिन्हें संवैधानिक रूप से अनुसूचित जाति (SC) कहा जाता है) के खिलाफ नफरत और हमलों में वृद्धि देखी जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट्स और हाल की घटनाएं इसकी पुष्टि करती हैं। 2022 में दलितों के खिलाफ दर्ज अपराधों की संख्या 51,000 से अधिक थी, जो 2021 के मुकाबले 1.2% की वृद्धि दर्शाती है। 2024 तक यह आंकड़ा 67,000 से ऊपर पहुंच गया, जिसमें हर 18 मिनट में एक अपराध दर्ज होने का औसत है। यह न केवल एक सामाजिक कलंक है, बल्कि लोकतंत्र की नींव को कमजोर करने वाला खतरा भी।
NCRB : आंकड़ों की क्रूर सच्चाई
NCRB की वार्षिक रिपोर्टें दलितों पर अत्याचारों की भयावह तस्वीर पेश करती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों (STs) के खिलाफ अपराधों में पिछले वर्ष की तुलना में 2023 में 28.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। देश भर में 2023 में कुल 12,960 मामले दर्ज किए गए जबकि 2022 में 10,064 मामले सामने आए थे।
2023 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में दलितों के खिलाफ अपराधों का 97.7% हिस्सा दर्ज हुआ, जिसमें हत्या, बलात्कार, लिंचिंग और संपत्ति नष्ट करने जैसे मामले शामिल हैं।
तमिलनाडु राज्य में SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर दलित महिलाओं पर बलात्कार के मामले प्रतिदिन औसतन 10 हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच की 2025 वर्ल्ड रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा सरकार के तहत दलितों और आदिवासियों पर हिंसा सामान्य है, जिसमें राज्य प्रायोजित हिंसा भी शामिल है।
ये आंकड़े केवल कागजों पर नहीं हैं; वे जीवंत कहानियां हैं। हर सप्ताह औसतन 13 दलित हत्याएं और प्रतिदिन 27 अत्याचार होते हैं। सिटिजंस फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से जून तक ही 113 जातिगत अत्याचार दर्ज हुए, जिसमें उत्तर प्रदेश और राजस्थान अग्रणी हैं। यह वृद्धि जागरूकता के कारण रिपोर्टिंग बढ़ने से भी जुड़ी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि समस्या कम हो रही है। बल्कि, सामाजिक-आर्थिक असमानता और राजनीतिक ध्रुवीकरण इसे और भड़का रहे हैं।
नफरत के साथ बढ़ रही घटनाएं
ये घटनाएं अलग-थलग नहीं हैं। 2025 में ही राजस्थान के कुचामन में दैनिक मजदूरी करने वाले दलित युवक अशोक मेघवाल को जातीय हिंदुओं ने जूतों, लाठियों और रॉड से पीट-पीटकर मार डाला। उत्तर प्रदेश के एटा में 10 वर्षीय दलित बच्चे की आंखें फोड़ दी गईं और जननांग काट दिए गए। गुजरात के अहमदाबाद में दलित शादी समारोह पर हमला हुआ, जहां संपत्ति तोड़ी गई। X (पूर्व ट्विटर) पर इन घटनाओं की चर्चा से पता चलता है कि दलितों पर हिंसा अब “नई सामान्य” बात है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू दलितों पर अत्याचारों की अनदेखी भी भारतीय दलित नेताओं की आलोचना का विषय बनी हुई है।
शहर से लेकर गांव तक अत्याचार की जड़े
इस हिंसा के पीछे बहुआयामी कारण हैं। सामाजिक स्तर पर, जाति व्यवस्था अभी भी ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बनी हुई है। आर्थिक असमानता को प्रमुख कारण कह सकते हैं। दलितों की 50% से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करती है व भूमि विवाद और रोजगार प्रतिस्पर्धा को भड़काती है। राजनीतिक रूप से, ध्रुवीकरण और आरक्षण विरोधी भावना हिंसा को ईंधन देती है। SC/ST एक्ट को कमजोर करने के प्रयासों ने अपराधियों को प्रोत्साहित किया है। X पर पोस्ट्स से स्पष्ट है कि ओबीसी ओर उच्च जातियों बीच गठजोड़ दलितों को निशाना बना रहा है।
ये हमले न केवल शारीरिक हिंसा हैं, बल्कि मनोवैज्ञानिक आघात भी हैं। दलित महिलाओं पर दोहरी हिंसा (जाति+लिंग) बढ़ रही है, जहां 2014-2022 के बीच मामले दोगुने हो गए। शिक्षा और रोजगार में बाधा, पलायन और सामाजिक बहिष्कार इसका परिणाम हैं। युवा दलित पीढ़ी में निराशा बढ़ रही है, जो सामाजिक अस्थिरता का कारण बन सकती है।
हाल के वर्षों में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने पीडीए (पिछड़ा दलित, आदिवासी अल्पसंख्या ) का नारा देकर इस जातीय खाई को पाटने के प्रयास शुरू किए हैं लेकिन अभी वह नाकाफी हैं। देश के सभी राज्यों में ऐसी एकजुटता के प्रयास करने की आवश्यकता है।
न्याय की दिशा में कदम आवश्यक
दलितों के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए SC/ST एक्ट को मजबूत करने के साथ ही तेज न्यायिक प्रक्रिया और जागरूकता अभियान भी जरूरी हैं। सरकार को NCRB डेटा पर कारगर कार्रवाई करते हुए विशेष अदालतें स्थापित करना चाहिए। सिविल सोसाइटी, मीडिया और राजनीतिक दलों को एकजुट होकर नफरत के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। डॉ. बी.आर. अंबेडकर का सपना समानता का था; इसे साकार करने का समय अब है। अन्यथा, यह हिंसा पूरे समाज को निगल लेगी।


