मुलायम सिंह यादव: संघर्ष, सियासत और ‘धरती पुत्र’ की विरासत (भाग 2)

मायावती का मीराबाई गेस्ट हाउस में विधायकों के साथ बैठक करना और मुलायम की सरकार से समर्थन वापस लेना, उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत थी। 2 जून 1995 को मायावती जब अपने विधायकों के साथ गेस्ट हाउस में थीं, तो वहां समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और कुछ तत्वों द्वारा हमला कर दिया गया। यह घटना ‘गेस्ट हाउस कांड’ के नाम से कुख्यात हुई। समाजवादी पार्टी के समर्थक कथित तौर पर मायावती और उनके विधायकों को बंधक बनाने और उन्हें अपनी पार्टी में शामिल होने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहे थे।

मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और किसी तरह पुलिस को खबर दी। उस समय के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने हस्तक्षेप किया और मायावती को सुरक्षित बाहर निकाला। इस घटना ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच की खाई को इतना गहरा कर दिया कि यह दुश्मनी दशकों तक चली। ‘गेस्ट हाउस कांड’ के बाद मायावती ने बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई और उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं। मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई, और इस घटना ने उनके राजनीतिक जीवन पर एक बड़ा दाग लगा दिया।

केंद्र की राजनीति में उदय

उत्तर प्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद मुलायम सिंह यादव ने राष्ट्रीय राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया. 1996 में वे मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव जीते और संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षा मंत्री बने. इस पद पर रहते हुए उन्होंने भारत की रक्षा नीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि, यह सरकार स्थिर नहीं थी और अल्पकाल में ही गिर गई.

उन्होंने बाद में भी कई बार लोकसभा चुनाव जीते और केंद्र की राजनीति में अपनी मजबूत उपस्थिति बनाए रखी. उनकी समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर तीसरे मोर्चे की सरकारों को बनाने और गिराने में. मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार के तौर पर भी देखा गया था, लेकिन राजनीतिक समीकरणों के चलते यह संभव नहीं हो पाया.

उत्तर प्रदेश में वापसी और परिवारवाद का आरोप

2003 में, उत्तर प्रदेश में एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना और मुलायम सिंह यादव तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। इस बार उन्होंने अपनी सरकार बनाने के लिए विभिन्न दलों से समर्थन लिया। उनके इस कार्यकाल में उन्होंने राज्य के विकास पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन उन पर परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप भी लगे। उनके बेटे अखिलेश यादव, भाई शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव सहित परिवार के कई सदस्य सक्रिय राजनीति में आ गए।

राजनीतिक विरासत और चुनौतियां

मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे. उन्हें ‘धरती पुत्र’ के रूप में जाना जाता था क्योंकि वे ग्रामीण पृष्ठभूमि से आए थे और किसानों व पिछड़ों के मुद्दों को उठाते थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़ों और दलितों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण को मजबूत किया, जिसने समाजवादी पार्टी को लंबे समय तक सत्ता में बनाए रखने में मदद की।

हालांकि, उनके कार्यकाल में कानून-व्यवस्था, नकल अध्यादेश और परिवारवाद जैसे मुद्दों पर भी उनकी आलोचना हुई. ‘गेस्ट हाउस कांड’ उनके राजनीतिक करियर का एक काला अध्याय रहा, जिसने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गहरी दरार पैदा कर दी.

मुलायम सिंह यादव का निधन 10 अक्टूबर 2022 को हुआ, लेकिन भारतीय राजनीति में, विशेषकर उत्तर प्रदेश में, उनकी विरासत अभी भी महसूस की जाती है. उन्होंने न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति की दिशा बदली, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी एक अमिट पहचान बनाई. उनकी कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने संघर्षों से जूझकर शीर्ष तक का सफर तय किया और भारतीय लोकतंत्र में पिछड़ों और वंचितों की आवाज बने।

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